Types of IV fluids in hindi

Types of IV fluids in hindi

सलाईन के प्रकार-   जब आप सब लोग बीमार पड़ते हैं तो सब लोग डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर आपको चेक करेंगे और अगर आप की बीमारी थोड़ी होगी तो आपको गोलिया देंगे। अगर थोड़ी ज्यादा होगी तो आपको इंजेक्शन देंगे।बहुत ज्यादा होगी, बहुत ही विकनेस होगा और बहुत दिनों से होगी तो वह आपको सलाइन यानी कि types of IV FLUIDS in hindi लगाएंगे। 


आप में से कई लोगों ने कम से कम एक बार तो सलाइन लगा ली होगी। बहुत सारे लोगों के मन में इस विषय में एक प्रश्न आता है कि SALINE सलाइन कितने प्रकार की होती है? और कौन-कौन सी बीमारी में कौन-कौन सी सलाइन लगाई जाती है? तो इस आर्टिकल में आपको आईवी फ्लुएड्स सलाइन के बारे में पूरी जानकारी दूंगा।
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      Types of iv fluids in hindi 

सलाइन टोटल पांच प्रकार की होती है। RL, NS, DNS, D5,D10। यह100ml, 500 ml, 1l,2l  में आती है।  यह पेशेंट के बीमारी और कंडीशन के हिसाब से लगाई जाती है।

1.RL- Ringer lactate रिंगर लेक्टेट इसमें सोडियम लेक्टेट sodium lactate,सोडियम क्लोराइड sodium lactate, पोटेशियम क्लोराइड potassium chloride, कैलशियम क्लोराइड calcium  chloride,यह कंटेंट होते हैं। यह सब इलेक्ट्रोलाइट्स electrolytes है। इलेक्ट्रोलाइट्स नॉरमल बॉडी फंक्शनिंग में बहुत ही काम आते हैं। जब बीपी कम हो जाता है, शरीर का पानी कम हो जाता है, तब सिर्फ शरीर में पानी देने से काम नहीं बनता। पानी के साथ-साथ इलेक्ट्रोलाइट्स भी शरीर में जाना बहुत ही जरूरी है। वरना पेशेंट आधा ही ठीक हो जाता है।


 RL  एक सबसे अच्छी सलाइन मानी जाती है। क्योंकि इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, सोडियम, बाइकार्बोनेट, मिलते हैं यह। सलाइन कब कब लगाई लगाई जाती है? जब आपको जनरल विकनेस होता है, थकावट सी महसूस होती है, बीपी आपका कम होता है,  लूज मोशन, एनी सौच को पतला होना, उल्टी आना इस कंडीशन में।

2.NS- नॉरमल सलाइन normal saline, इसका कंटेंट है पॉइंटo.9 परसेंट सोडियम क्लोराइड। यह डायबिटीज पेशेंट में सबसे बेस्ट मानी जाती है अगर आपका बीपी बहुत ही ज्यादा कम हुआ हो, या फिर गैस्ट्रोएन्टराइटिस gastroenteritis केस में शरीर का पानी कम हो जाता है। तब सिर्फ RL लगाना उचित नहीं होता। आर एल के साथ-साथ आपको NS भी लगाना पड़ता है। 


अगर कौन सा भी एंटीबायोटिक का इंजेक्शन देना होता है तो यह NS में ही मिला कर दिया जाता है।दूसरे कई इंजेक्शन दूसरे सलाइन में मिलाकर दिए जा सकते हैं। लेकिन एंटीबायोटिक सिर्फ एनएस में ही मिला कर दिया जाता है।NS  जख्म क्लीन करने के लिए भी उपयोगी है।

सलाइन के प्रकार

3.DNS- इसमें कंटेंट है डेक्सट्रोज नॉरमल सलाइन dextrose normal saline,  कंटेंट है0. 9% सोडियम क्लोराइड प्लस 5% dextrose ।इसमें  सोडियम क्लोराइड यह इलेक्ट्रोलाइट्स भी पाए जाते हैं और डेक्सट्रोंज यानी  शुगर भी होती है।  तो जब दोनों ही कम हो जाते हैं, तब इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह दूसरी सबसे ज्यादा यूज होने वाली सलाइन है। जब आप तीन-चार दिन तक लगातार खाना नहीं खाते, बहुत ही बीमार होते हैं  खाना नहीं खाया जाता,सर्दी खांसी के समय, बुखार के केस में, तब यह सबसे बेस्ट सलाइन है।

4,5.- चौथी और पांचवी सलाइन है D5 और D10, D5 में 5% Dextrose और D10 में 10% dextrose पाया जाता है। DNS में डेक्सट्रोज के साथ-साथ nacl यानी सोडियम क्लोराइड भी पाया जाता है। पर D5 और D10 में सिर्फ और सिर्फ शुगर ही पाया जाती है। इसका इस्तेमाल हाइपोग्लाइसेमिक hypoglycemic पेशेंट में किया जाता है। 


इसका मतलब कोई शुगर का पेशेंट हो उसका अचानक से शुगर लेवल कम हो जाती हो, या फिर कोई भी नॉर्मल खाना नहीं खाया हो और शुगर अचानक से कम हो जाए। अगर कोई पेशेंट गिर गया हो तो उसे अस्पताल में लाया जाए तो उसका शुगर चेक करेंगे। शुगर 60 से या उसके नीचे हो या 40 हो तब सलाईन लगाई जाती है।और बहुत ही ज्यादा स्पीड से शुगर बढ़ाने के लिए इंजेक्शन D25 आता है। वह सलाइन में भी मिलाया जाता है।

Cautions during iv fluids 

    शुगर जिनकी ज्यादा बढ़ती है, डायबिटीज के पेशेंट, उनमें D5 , D10 और डीएनएस नहीं लगाई जाती। उन पेशेंट में RL और NS लगानी चाहिए। फिर भी डायबिटीज के पेशेंट में NS सबसे अच्छी सलाइन है। 

सलाइन कब-कब नहीं लगानी चाहिए?

 बीपी के पेशेंट में जिनका बीपी बहुत ही ज्यादा बढ़ता है। BP ज्यादा है तो नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि सलाइन लगाने के बाद बीपी बढ़ता ही है।  अस्थमा के पेशेंट मैं,  अस्थमा के पेशेंट में क्या होता है कि  सलाइन लगाने के बाद अस्थमा के SYMPTOMS है वह बढ़ जाते हैं।
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 THAT’S THE END .

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